भारत के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के रूप में दर्ज है। 101 साल पहले यानी 13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर के आदेश पर बंदूकधारियों ने बैसाखी का उत्सव मनाने जुटी भीड़ पर ताबड़तोड़ गोलीबारी कर दी थी। इस हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) में कई बेकसूर लोगों को जान चली गई थी। जालियांवाल बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे होने पर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेसा का भी बयान आया था। टेरेसा ने जलियांवाला बाग नरसंहार पर दुख जताया था और इसे इतिहास का शर्मनाक धब्बा करार दिया। हालांकि, उन्होंने कोई माफी नहीं मांगी है।
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जलियांवाला बाग नरसंहार (Jallianwala Bagh Massacre) को अंजाम देने वाले जनरल डायर ने 11 अप्रैल 1919 को अमृतसर में कदम रखा था। अमृतसर में जलियावाला बाग कांड से पहले कई ऐसी घटनाएं हुई थी जिससे वहां मौजूद अंग्रेज सहम गए थे। इसलिए अंग्रेज क्रांतिकारियों ने उनकी सेना का मनोबल बढ़ाने और लोगों के बीच दहशत फैलाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत के सबसे क्रूर ब्रिगेडियर जनरल आर.ई.एच डायर को अमृतसर भेज दिया था।
13 अप्रैल को बैसाखी का दिन था जब आजादी के दीवाने अपने नेताओं की आव्हान पर जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे। उस वक्त पूरे देश मे रौलेट एक्ट के विरोध में प्रदर्शन हो रहा था। बता दें रौलेट एक्ट के तहत भारत की ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह के शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी और उस व्यक्ति को बिना किसी जूरी के सामने पेश किए जेल में डाल सकती थी। साथ ही पुलिस भी बिना किसी जांच के किसी भी व्यक्ति को दो साल तक हिरासत में रख सकती थी। इस अधिनियम से ही भारत में हो रही राजनीतिक गतिविधियों को दबाया जा रहा था और ब्रिटिश सरकार को एक बड़ी ताकत हासिल हो गई थी।
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9 अप्रैल को अंग्रेज सरकार ने पंजाब से ताल्लुक रखने वाले दो नेताओं डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया गया था। इससे गुस्साए लोगों ने रेलवे स्टेशन, तार विभाग सहित कई सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया था। बाद में अंग्रेज सरकार ने विरोध के डर से इन दोनों को अमृतसर से धर्मशाला स्थानांतरित कर दिया था और इन्हे नजरबंद कर दिया था। शहरभर में विरोध-प्रदर्शन देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लागू कर दिया। इस लॉ के तहत जहां भी तीन से ज्यादा लोगों को इकट्ठा देखा जाता तो उन्हें पकड़कर जेल में डाला दिया जाता। इन्ही नेताओं की गिरफ्तारी और अंग्रेज सरकार के विरोध में 13 अप्रैल को बैसाखी के अवसर पर जलियावाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। बता दें जलियावाला बाग 10 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ करीब सात एकड़ का बाग था, जिसमें संकरे 5 दरवाजे थे।
सभा के लिए हजारों की संख्या में लोग इस बाग में इक्ट्ठा हो गए। इस सभा की सूचना जैसे ही जनरल डायर मिली तो वह सिपाहियों के साथ इस बाग के लिए रवाना हो गया। डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए, अपने सिपाहियों को गोलियां चलाने के आदेश दे दिए जिससे हजारों जिंदगियां खामोश हो गई। कहा जाता है कि इन सिपाहियों ने करीब 10 मिनट में 1,650 राउंड गोलियां चलाई थी। गोलीबारी से बचने के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे, लेकिन इस बाग के मुख्य दरवाजे को भी सैनिकों द्वारा बंद कर दिया गया था और ये बाग चारों तरफ से 10 फीट तक की दीवारों से बंद था। ऐसे में लोग अपनी जान बचाने के लिए बाग में बने एक कुएं में कूद गए। पूरा बाग लाशों से भर गया। जनरल डायर इतना क्रूर था कि वह लोगों को वहीं तड़पता हुआ छोड़कर चला गया।
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शहीदों की संख्या पर आज भी विवाद
अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, तो वहीं जलियावाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिशों के अभिलेख में इस कांड में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के मरने की बात स्वीकारी है। ज्यादातर आंकड़ों के अनुसार इस कांड में 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और 2000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
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दुनियाभर में इस हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) और ब्रिटिश सरकार की खूब आलोचना हुई थी लेकिन कई अंग्रेज अफसर डायर का पक्ष ले रहे थे। बाद में ब्रिटेन की संसद के निचले सदन के दबाव में जुलाई 1920 को जनरल डायर को रिटायर कर दिया गया था।
इस हत्याकांड को हुए 100 साल हो गए हैं लेकिन आज भी जलियावाला बाग की दीवारों पर डायर द्वारा बरसाई गई गोलियों के निशान मौजूद हैं। इस घटना के बाद हजारों लोगों की शहादत का बदला लेने के लिए सरदार उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में भाषण देते समय डायर को मौत के घाट उतार दिया। 31 मार्च 1940 को अंग्रेजों ने उधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया था।
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