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यह कहकर रिजेक्ट कर दिए गए थे अमरीश पुरी


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दिग्गज कलाकार अमरीश पुरी आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी फिल्मों के माध्यम से वे आज भी कई किरदारों में जिंदा हैं। अमरीश पुरी बॉलीवुड जगत में हीरो बनने की हैसियत से आए थे लेकिन किस्मत ने उन्हें विलेन बना दिया।

1984 में अमरीश पुरी को स्टीवेन स्पीलबर्ग की फिल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ डूम’ में देखा था। जिसमें उन्होनें मोलाराम का किरदार निभाया। इसके बाद उनकी अभिनय कला को पहचान मिली। इस किरदार के लिए उन्होनें अपना सिर मुंडवाया था। जो पुरी को इतना पसंद आया कि वह उसी लुक में कई सालों तक रहे। इसके बाद इस लुक को दर्शकों द्वारा खूब पसंद किया गया।

80 के दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई प्रसिद्ध भूमिकाएं निभाईं। हम पांच, नसीब, विधाता, हीरो, अंधा कानून, अर्ध सत्य जैसी फिल्मों में उन्होंने बतौर खलनायक ऐसी छाप छोड़ी कि फिल्म प्रेमियों के मन में उनके नाम से ही खौफ पैदा हो जाता था।

साल 1987 में आई मिस्टर इंडिया में उनका किरदार मोगैंबो बेहद मशहूर हुआ। इस किरदार से उनकी लोकप्रियता काफी ज़्यादा बढ़ चुकी थी। इसके बाद दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे में जा सिमरन जा... वाले संवाद के लिए भी अमरीश पुरी को पहचाना जाता है।

अमरीश पुरी ने 30 वर्ष से भी ज्यादा वक्त तक फिल्मों में अभिनय किया है और नकारात्मक भूमिकाओं को इस प्रभावी ढंग से निभाया कि हिंदी फिल्मों में वो बुरे आदमी का पर्याय बन गए थे।

एक इंटरव्यू के दौरान अमरीश पुरी के बेटे राजीव पुरी ने बताया था कि, ‘पापा जवानी के दिनों में हीरो बनने मुंबई आए हुए थे। उनके बड़े भाई मदन पुरी पहले से फिल्मों में थे। लेकिन किसी डायरेक्टर ने उन्हें कहा कि तुम्हारा चेहरा हीरो बनने लायक नहीं है। उसी समय पापा का दिल टूट चुका था।

जब अमरीश पूरी को लगा की दर्शक उन्हें विलन के लुक में ही हीरो से ज़्यादा पसंद करने लगे है तो उन्होंने ठान लिया की वो अब विलन बनकर ही बॉलीवुड जगत पर राज करेंगे। अपने करियर में वो बहुत तेज़ी से आगे बढ़ते चले गए और विलन भूमिका के दम पर ही करोड़ो दर्शको के बीच एक खास पहचान बनाने में सफल हो गए।


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